लुधियाना, 5 दिसंबर,चैनल88 न्यूज़ (ब्यूरो):- कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने जीएसटी कर प्रणाली की वर्तमान व्यवस्था पर बड़ा तंज कसते हुए कहा की यह अब एक औपनिवेशिक कर प्रणाली बन गई है जो जीएसटी के मूल घोषित उद्देश्य “गुड एंड सिंपल टैक्स के ठीक विपरीत है। वर्तमान जीएसटी कर प्रणाली भारत में हो रहे व्यापार की जमीनी हकीकत से काफी हद तक दूर है। जीएसटी के तहत विभिन्न हालिया संशोधनों और नियमों की शुरूआत ने कर प्रणाली को बेहद जटिल बना दिया है और प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के इज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस की मूल धारणा के बिलकुल खिलाफ है। कैट ने केंद्रीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीथारमन से इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए समय माँगा है।
कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री बी.सी.भरतिया एवं राष्ट्रीय महामंत्री श्री प्रवीन खंडेलवाल ने पिछले 4 वर्षों से अधिकारियों द्वारा जीएसटी के वर्तमान स्वरुप की कड़ी आलोचना करते हुए कहा की भारत में जीएसटी लागू होने के लगभग 4 साल बाद भी जीएसटी पोर्टल अभी भी कई चुनौतियों से जूझ रहा है। नियमों में संशोधन किया गया है लेकिन पोर्टल उक्त संशोधनों के साथ समय पर अद्यतन करने में विफल है। अभी तक किसी भी राष्ट्रीय अपीलीय न्यायाधिकरण का गठन नहीं किया गया है। “वन नेशन-वन टैक्स” के मूल सिद्धांतों को विकृत करने के लिए राज्यों को अपने तरीके से कानून की व्याख्या करने के लिए राज्यों को खुला हाथ दिया गया है। कोई केंद्रीय अग्रिम शासक प्राधिकरण का गठन नहीं किया गया है। जीएसटी अधिकारी ई सिस्टम के द्वारा कर पालना तो कराना चाहते हैं किन्तु देश में व्यापारियों के बड़े हिस्से को अपने मौजूदा व्यवसाय में कम्प्यूटरीकरण को अपनाना बाकी है, इस पर उन्होंने कभी नहीं सोचा और व्यापारियों आदि को कंप्यूटर आदि से लैस करने के विषय में कोई एक कदम भी नहीं उठाया गया है।
श्री भरतिया और श्री खंडेलवाल ने कहा कि हाल ही में एक जीएसटी में एक नियम लागू करके जीएसटी अधिकारियों को किसी भी व्यापारी के जीएसटी पंजीकरण को रद्द करने का मनमाना अधिकार दे दिया है जिसमें व्यापारियों को कोई नोटिस नहीं दिया जाएगा और सुनवाई का कोई अवसर भी नहीं दिया जाएगा। यह न्याय के प्राकृतिक सिद्धांत के बिलकुल विरूद्ध है।अधिकारियों को मनमाने बेलगाम अधिकार दिए जा रहे हैं जिससे निश्चित रूप से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा। जीएसटी कानून को बेहद विकृत किया गया है, जो इस तथ्य से स्पष्ट है कि 31 दिसंबर, 2020 तक जीएसटी लागू होने की तारीख के बाद से कुल 927 अधिसूचनाएं जारी की गई हैं, 2017 में 298, 2018 में 256, 2019 में 239 और 2020 में 137 सूचनाएं। ऐसी स्थिति में हम व्यापारियों से कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वे कराधान प्रणाली का समय पर अनुपालन करें।
श्री भरतिया और श्री खंडेलवाल ने कहा कि वे वित्त मंत्री के साथ बातचीत के जरिए इन मुद्दों को हल करना चाहते हैं। हम कर आधार को विस्तृत करने, राजस्व में वृद्धि करने में सरकार का साथ देने चाहते हैं किन्तु कर ढांचे के सरलीकरण और युक्तिकरण को करना पहले जरूरी है।