नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि किसी भी व्यक्ति की जाति में बदलाव नहीं हो सकता है। जन्म से ही किसी व्यक्ति की जाति तय होती है और इसे शादी के बाद भी बदला नहीं जा सकता है। एक महिला शिक्षिका के केंद्रीय विद्यालय में नियुक्ति के मामले पर सर्वोच्च अदालत में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने अहम टिप्पणी की। दरअसल महिला ने अनुसूचित जाति (एससी) के एक शख्स से शादी करके आरक्षण का फायदा उठाते हुए 21 साल पहले केंद्रीय विद्यालय में शिक्षिका के तौर पर नौकरी शुरू की थी। अब ये महिला उस विद्यालय में उप-प्रधानाचार्य के तौर पर काम कर रही हैं।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एमएम शांतनागौदार की बेंच ने कहा कि भले ही महिला अब दो दशकों तक स्कूल में काम करने के बाद वाइस-प्रिंसिपल बन गई हों, लेकिन उन्हें आरक्षण का फायदा नहीं मिल सकता। बेंच ने कहा कि महिला का जन्म उच्च जाति में हुआ है, ऐसे में शादी भले ही उन्होंने एससी जाति में किया हो उन्हें आरक्षण का फायदा नहीं मिल सकता।
जिस महिला को लेकर ये सुनवाई हुई जानकारी के मुताबिक उन्हें साल 1991 में बुलंदशहर के जिलाधिकारी ने एससी जाति का प्रमाणपत्र जारी किया था। महिला ने अपनी अकादमिक योग्यता और एससी सर्टिफिकेट के आधार पर 1993 में पंजाब के पठानकोट जिले में स्थित केंद्रीय विद्यालय में पोस्ट ग्रेजुएट शिक्षिका के तौर पर नियुक्ति प्राप्त की। जानकारी के मुताबिक महिला ने नौकरी के दौरान ही एम.ऐड भी कर लिया।
हालांकि अब महिला की नियुक्ति के दो दशक बाद इसको लेकर शिकायत दर्ज कराई गई है। इसमें कहा गया है कि उन्होंने आरक्षण का फायदा गलत तरीके से लिया है। इस मामले में जांच के बाद अधिकारियों ने महिला का सर्टिफिकेट खारिज कर दिया। वहीं केंद्रीय विद्यालय ने भी 2015 में महिला को नौकरी से टर्मिनेट कर दिया। महिला ने केंद्रीय विद्यालय के फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की, हालांकि कोर्ट ने महिला की याचिका खारिज कर दी। इसके बाद महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।