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करनाल में बगैर पंजिकृत सोशल मीडिया न्यूज़ पर प्रतिबंध

करनाल 10 जुलाई 2020,चैनल88 न्यूज़ (इन्दु बंसल) जिले में कुछ व्यक्तियों द्वारा सूचना एवं जन सम्पर्क निदेशालय हरियाणा व सूचना प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार के समक्ष अपने आपको पंजीकृत किए बिना गैर सत्यापित व भ्रामक तथ्यों के आधार पर समाचारों का सम्प्रेषण, सोशल मिडिया के विभिन्न प्लेटफार्म जैसे यू-ट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम, लिंक्डइन, व्हॉट्सएप, ट्विटर, टेलीग्राम, पब्लिक एप व अन्य माध्यमों से किया जा रहा है और इससे समाज में कोरोना महामारी जैसे संकट के समय भ्रामक स्थिति बनना संभावित है। यदि इसको नियंत्रित नहीं किया गया तो इसके असाधारण रूप से आमजन के मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ सकते हैं।
इसे देखते हुए यह नितान्त आवश्यक हो जाता है कि सोशल मीडिया को प्लेटफार्म पर न्यूज चैनल के संचालन के लिए किसी रेगुलेटरी बॉडी से पंजीयन कराया जाए तथा समूचित रूप से सत्यापन के आधार पर समाचार का प्रसार किया जाए। कोरोना संक्रमण की अवधि में इस तरह की गतिविधियों पर नियंत्रण जनहित व लोक स्वास्थ्य की दृष्टि से नितान्त आवश्यक है। जहां तक ऐसे मीडिया की संख्या की बात है, उसका निर्धारण करना मुश्किल है और तदानुसार ऐसे समस्त को, किसी प्रकार का व्यक्तिगत नोटिस दिया जाना संभव नहीं है।
जिलाधीश एवं जिला आपदा प्रबंधन के अध्यक्ष निशान्त कुमार यादव द्वारा उक्त परिस्थितियों के मद्देनजर अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म जैसे-ट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम, लिंक्डइन, व्हॉट्सएप, ट्विटर, टेलीग्राम, पब्लिक एप का न्यूज चैनल के रूप में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप संचालित गतिविधियों को तत्काल रूप से जनहित में प्रतिबन्धित किया गया है। उक्त आदेशों की अवहेलना करना भारतीय दण्ड संहिता की धारा 188, 505(1), आपदा प्रबन्धन अधिनियम 2005 की धारा 54 तथा एपीडेमिक डिजीज एक्ट 1957 की धारा 1 व 2 के तहत दण्डनीय होगा। यह आदेश 10 जुलाई से लेकर 24 जुलाई मध्य रात्रि 12 बजे तक प्रभावी रहेंगे। उन्होंने बताया कि सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म का न्यूज चैनल के रूप में प्रयोग करना जनर्लिस्ट एक्टिविटी के तहत आता है। अत: इसकी अनुमति सूचना एवं जन सम्पर्क निदेशालय हरियाणा व सूचना प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार से लिया जाना आवश्यक है।
आदेशों में कहा गया है कि वर्तमान में देश कोरोना संक्रमण के गम्भीर दौर से गुजर रहा है तथा चिकित्साकर्मी, आशा सहयोगनी, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, अध्यापक, पुलिसकर्मी व समस्त प्रशासनिक मशीनरी कोरोना योद्धाओं के रुप में कोरोना संक्रमण के विरूद्ध स्वयं की जान जोखिम में डालकर लड़ाई लड़ रही है, ताकि आम जनता के जीवन की सुरक्षा की जा सके।
माननीय उच्चतम न्यायालय के द्वारा रिट पिटीशन (सिविल) 468/2020 व 469/2020 में पारित निर्णय दिनांक 31-03-2020 अलख आलोक श्रीवास्तव बनाम यूनियन ऑफ इंडिया वगैरह में करोना महामारी के सन्दर्भ में प्रिन्ट मीडिया, इलैक्ट्रॉनिक मीडिया व सोशल मीडिया के बाबत महत्वपूर्ण निर्देश पारित किये गये है। जिन्हें वर्तमान प्रकरण में उल्लेखित किया जाना भी उचित होगा। माननीय उच्चतम न्यायालय के द्वारा उक्त निर्णय में यह अभि-निर्धारित किया गया है कि सोशल मीडिया के किसी भी प्लेटफार्म जैसे यू-ट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम, लिंक्डइन, व्हॉट्सएप, ट्विटर, टेलीग्राम, पब्लिक एप व अन्य के द्वारा यदि किसी भी प्रकार की फेक और अपर्याप्त रिपोर्टिंग की जाती है, इससे समाज में उत्तेजना फैल सकती है, जिसके कारण इस कोरोना महामारी की स्थिति में समाज पर घातक परिणाम हो सकते हैं व आमजन के मानसिक स्वास्थय पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। उक्त निर्णय में आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 की धारा 54 का उल्लेख किया गया है, जिससे इस बात का स्पष्ट प्रावधान है कि यदि किसी भी व्यक्ति के द्वारा बिना तथ्यों के सत्यापन किए गैर सत्यापित, गलत सूचना प्रसारित (सर्कुलेट) की जाती है तो आमजन में भय फैल सकता है। इस अवस्था में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 188 में दण्ड के प्रावधान है तथा यह अपेक्षा की गई हैं कि समस्त पब्लिक अथॉरिटी, भारत सरकार, राज्य सरकार के द्वारा आमजन के लिए समय-समय पर जारी हैल्थ एडवाईजरी के निर्देशों का पालन किया जायेगा ताकि आमजन के स्वास्थ्य का प्रतिरक्षण किया जा सके साथ ही यह अपेक्षा की गई है कि तथ्यों का सत्यापन किये बिना समाचारों का प्रकाशन नहीं किया जाए, ताकि समाज में उत्तेजना नहीं फैले तथा आमजन के मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव नहीं पड़े। आदेशों में बताया गया है कि जो भी व्यक्ति आपदा या इसकी गम्भीरता के सम्बन्ध में झूठी चोतावनी को प्रसारित करता है, जिसके परिणामस्वरूप समाज में लोगों के बीच घबराहट फैलती है, ऐसी झूठी चेतावनी फैलाने वाले व्यक्ति को 1 वर्ष तक कारावास की सजा और जुर्माना किया जा सकता है।

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